Wednesday, July 28, 2010

घडी

कहने को ये घडी है
समयकी ये हथकडी है
टिक टिक कॆ संगीतसे
मेरे जीवनसे ये जुडी है

ना कभी कुछ कह्ती
ना कभी कुछ चाहती
एकसी रफ़्तारसे
केवल आगेकी तरफ़ चलती

दिन गुजरके शाम हो जाती
रात भी थकके सो जाती
इस भागती दौडती दुनियाका
हर पल आभास कराती

समयनॆ जीवनके रंग बदले
जीवन मुल्योंके अर्थ बदले
जिस भीडका मै हिस्सा था
उसीमे अपनेको पाया अकेले

आज उसकी टिक टिक धिमीसी थी
रफ़्तार भी कुछ थकी थकीसी थी
अन्तिम सांसें गिन रही थी
आंखॊ आंखो से कुछ कह रही थी

देख जीवन अनिश्चित है
सबका यहांसे जाना सुनिश्चित है
जिस जीवनरेतको तु मुठ्ठीमे धरे है
वो कण कणसे गिरेगी वो निश्चित है

भविष्य वर्तमानमे बदल जाएगा
वर्तमान भूतकालमे सो जाएगा
जिस माटीसे तु उभरा है
उसी माटीमे इक दिन खो जाएगा

कर्तव्य पथ का राही बन
निरन्तर चलता जा
फलकी चिन्ता मत कर
बिन अभिलाषा पा

अतिथी बनकर आया है
खुशीयां देता जा
प्यारे तेरे बोल ये
सबको देता जा

जीवनकी नश्वरता स्वीकार हुई
सॄष्टी मानो जैसे स्तब्ध हुई
कर्मकी श्रेष्ठताका आभास हुआ
मृत्युकी सत्यता स्विकार हुई

मांगे जो मिलता नही
सरल जीवन का सार
इतना सब कुछ कह गयी
बिन चिठ्ठी बिन तार

कर्तव्य बोध का ग्यान देकर
अब वो बिल कुल चुप है
सुख दुख के हर पल से
अब वो बिल कुल मुक्त है