जिंदगी की तपती धूप का मन्जर जबभी सामने आता है
हर बेचारा अपनी बिखरी तकदीरसे खफ़ा हो जाता है
उम्रके कदमॊंकी चाप हर शक्स जरूर सुनता है
क्यों बाकी जिंदगीसे अपनी नज़रें चुराता है
खुशीकी चाहतमे फ़ासले दूर तक बनाता है
हसरतोंकी प्यास दरिया भी कहां बुझाता है
दिल में सिर्फ़ तन्हाई पर आंखोंमे अरमां है
उम्मीदकी डोरको हर शक्सने हाथोंमे थामा है
किसी के लिये ये जिंदगी मेहेज एक सिलसिला है
मिटकर जो फिर बने ऐसा पानीका बुलबुला है
उसीकी पनाहमे हर लम्हा तुझे याद करते है
ऐ खुदा तेरी रोशनीके दामनमे जिया करते है
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