Sunday, May 29, 2011

Zindagi ki tapti Dhoop

जिंदगी की तपती धूप का मन्जर जबभी सामने आता है
हर बेचारा अपनी बिखरी तकदीरसे खफ़ा हो जाता है
उम्रके कदमॊंकी चाप हर शक्स जरूर सुनता है
क्यों बाकी जिंदगीसे अपनी नज़रें चुराता है

खुशीकी चाहतमे फ़ासले दूर तक बनाता है
हसरतोंकी प्यास दरिया भी कहां बुझाता है
दिल में सिर्फ़ तन्हाई पर आंखोंमे अरमां है
उम्मीदकी डोरको हर शक्सने हाथोंमे थामा है

किसी के लिये ये जिंदगी मेहेज एक सिलसिला है
मिटकर जो फिर बने ऐसा पानीका बुलबुला है
उसीकी पनाहमे हर लम्हा तुझे याद करते है
ऐ खुदा तेरी रोशनीके दामनमे जिया करते है

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