Saturday, October 2, 2010

अरमानो की दास्तान-A poem

ऐ दिल तु बहोत अजीबसा है
अरमांनो का तु सागर है
हर मौज पे इक अरमांन उठता
जो तुझको बहा ले जाता है

सपनोकी डगरपे ये चलते
मन्जर इनका है ख्वाबोंका
कुछ ख्वाब तो सच होते लेकिन
बाकी एहसास मायूसी का

तकदीर के हर इक पन्ने पर
हर इक अरमां की कहानी है
कुछ पन्नॊपर बच्चपन की मेहेक
बाकी पर ढलती जवानी है

इस रंग बदलती दुनियांमे
ये भी अपना इमान बदले
कोई कुछ पलके थे मेहमांन
कोई साया बनकर साथ चले

टुटॆ हुए अरमांनो का बोझ
मानॊ जैसे कोई लाश लगे
गेहरी खामोशीका आलम
सब जग जैसे रूठा लागे

इतनी ठोकर खाकर फिर भी
क्युं आंस है इन अरमांनो की
धोका दे जाते है फिर भी
क्युं प्यास है इन अरमांनोकी

इतने अरमांन उढने पर भी
ऐ दिल फिर भी तु न है खाली
संसार की दौलत पाकर भी
सब कुछ जैसे खाली खाली

जीवन की बाज़ी खेल चुके
कुछ नही है बस है अकेले
जिती दुनियाँ तुझसे हारे
ऐ दिल तेरे खेल निराले

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