Sunday, September 12, 2010

जीवन उद्देश्श-A poem

अन्जान सफ़र के राही है
कुछ देर के सब हमराही है
कुछ रोकर सफ़र ये तय करते
कुछ हंस कर चलते रह्ते है

कुछ का जीवन सुविधा से भरा
कुछ का जीवन दुविधा से भरा
कुछ सुखमय रथके है राही
कुछ जलते पथपर चलते है

कुछ सुखमें दुख अनुभव करते
कुछ दुखमें भी सुख चुनते है
कुछ को अभिलाषा जग जीते
कुछ हर आशाको तरसते है

जिस क्षण जीवन हमको मिलता
उस क्षण इस पार के राही है
जब काल का पलडा हो भारी
अनजान डगर के राही है

सब देखके भी अनदेखा करें
सब जानके भी अनजाने है
दो हाथ ह्जारों आंस लिये
मदहोश है सब मतवाले है

मेरा हो या तेरा जीवन
सब की इकसी ही कहानी है
पलभर ना हम आराम करें
हर उम्रकी यही रवानी है

तकदीर से ज्यादा ना पाकर
भगवान को हम बदनाम करें
खुदको भगवान बनाकर हम
अपनी किस्मत की कहानी लिखें

धनवान हो या निर्धन कोई
दाता की नजर मे एकसे है
कर्मो से हम बनते रावण
कर्मो से ही हम राम बने

जैसी करनी वैसी भरनी
जो बॊया फल वो पाना है
खाली हाथों से आये है
खाली हाथों से जाना है

गुजरे हुए अखबारों की तरह
अस्तित्व हमारा है प्यारे
बेदर्द ज़माने का दस्तुर
कुडा करकट फौरन त्यागे

अनमोल है तोह्फ़ा जीवनका
उसकॊ बरबाद न कर प्यारे
मरकर भी हमें कोई याद करें
जीवन ये सफ़ल है तब प्यारे

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